आज नफ़रत है मुझसे

बात तो उस दिन बहुत अच्छी से की थी 
तू पहली बार मुझसे 
समझाई थी भाग भाग के मेरे पिछे 
जब में  भाग रही थी खुद से ।

आखिर हुआ क्या उस बेजुबान लब्जो की
जो तूने मुझे सुनाई थी
फ़ितरत तो मेरी देखो आज
नज़र भी शर्मिंदा है खुद की नाम से ।

दूसरों का हौसला बनना था सपना
रूठी हुई आंखों में जगाना था सपना
मासूमियत तो नहीं हैं तुझमें आज
कहां खो गई है तू अपने ही कमरे में ।

जब है तू राह और राहत खुद की
जो तूने खुद को खुद आजमाई थी
तो फिर क्यों मूड रही है राह तेरी 
जो आज तक तूने खुद सफर की थी ।

आज नफ़रत है मुझसे
और मेरी झूठी तसल्ली तुझसे
 उम्मीद की किरन है तू लाखों का
काश तू आज भी खुद को समझा सके । ।