जिंदगी के कुछ समझौते 

न मुझे पता था ;

न मेरे किस्मत बनाने वाले को ।

शायद इसलिए किस्मत से खूब

समझौते होते है हर रोज शाम को।


पल पल की कहानी;

जो पल भर में शुरू होके

 पल भर में दफना  दी जाती थी;

उस आंखों के सामने,जो हर पल को जीना चाहती थी ।


सपने थे साथ में उसके

कुछ अपनों की एहसास 

एहमियत थी पूरी कायनद की

जो उससे क़िस्मत की बनाए किरदारों को भी निभाए जाए ।


कुछ सुकून थे साँस में उसके

तो कुछ दर्द थे उसके सोने जैसी सीने में

शायद उससे पता था

पर वो जानके भी अनजान बनने की चाहत रखती थी।


खुल के जीने की जज्बा 

जो वो कभी खुद को खुद से उधार मांगती थी

आज बही जज्बा पर सौ सवाल उठाए

खुद को संभालने की कोशिश तक भी नहीं करती ।


आसान थे उसके सामने आसमान में उड़ना

पर थे  ऐसे कुछ रिश्ते उस ज़मीन से जकड़े 

जो शायद उसको रोक दे

और उसको  एक नई उड़ान दे भी दे !


कभी आंसू थे उसके अनकही आंखों में

तो कभी अनगिनत हँसी की खिलखिलाहट  ।

जिंदगी को परखना सिखनी थी उसे

पर शायद जिंदगी की रोशनी उससे और एक नई उम्मीद दिला  दे ।


~मितांजली पधान